सन 1965 में जन्मे अजय मनचंदा रंगमंच के एक सुपरिचित एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी नाट्यकार हैं।
लगभग 12-13 वर्ष की आयु में रंगमंच से जुड़े और 2-3 साल तक बैक स्टेज में चाय पिलाने, सफाई करने से लेकर मेकअप, सेट्स, लाइट्स, कॉस्टयूम्स, संगीत आदि सब तरह के कार्यों में कार्यरत रहे।
सन 1980 के आस पास अभिनय शुरु किया। 25 से 30 नाटकों में अभिनय करने के बाद किन्ही वजहों से निर्देशन की तरफ रुझान बढ़ने लगा और 1983 में पहली प्रस्तुति श्री भगवती चरण वर्मा के नाटक ‘रुपया तुम्हे खा गया’ का निर्देशन किया। उसके बाद से आज तक 160 से ऊपर नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं। जिसमे अपने ग्रुप के अलावा ढेरों सरकारी ग़ैर सरकारी संस्थायों के लिये भी बहुत सी वर्कशॉपस के साथ साथ नाट्य प्रस्तुतियां भी निर्देशित की। जिनमे एन एस डी, साहित्य कला परिषद, उर्दू अकादमी,
पंजाबी अकादमी, नेहरु युवा केन्द्र संगठन, दिल्ली नाट्य संघ, तिहाड़ जेल आदि उल्लेखनीय हैं। इनमे से बहुत सी प्रस्तुतियों को सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति एवं निर्देशन के लिये सम्मानित भी किया गया।
थियेटर के साथ साथ कई टी वी धारवाहिकों एवं फिल्मों में भी अभिनय किया, साथ ही निर्देशन से भी जुड़े रहे। रेडियो के नाटकों धारवाहिकों आदि में भी अपनी आवाज़ से एक अलग जगह बनायी।
थियेटर-इन-एजुकेशन में एक अलग जगह बनाने के बाद शिव नादर यूनिवर्सिटी, अंसल यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के भी बहोत से कॉलेजिस आदि के साथ सम्बध रहे।

इसी सब के साथ साथ लेखन में भी रूची बढ़ने लगी और इसी के चलते बहुत से नाटकों का रुपंतरण भी किया। उसी के परिणाम स्वरूप उनकी ये पहली कृती के रूप मे ‘लीला’ नाटक प्रस्तुत है।

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